प्रयागराज न्यूज डेस्क:190 वर्षों की गुलामी के बाद 15 अगस्त 1947 की सुबह इलाहाबाद (अब प्रयागराज) की गलियों और मोहल्लों में एक नया उत्साह और उमंग था। सूरज की पहली किरण के साथ ही स्वतंत्र भारत का उदय हुआ और शहर ने इस ऐतिहासिक पल का गवाह बनकर इतिहास में अपनी जगह बनाई।
14 अगस्त की रात से ही शहर में हलचल थी। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रावास, युवा मंडल, छात्र संगठन और स्वतंत्रता सेनानी पूरे शहर में तिरंगे तैयार करने, नारों के पोस्टर लिखने और जुलूसों की तैयारी में जुटे थे। आधी रात जैसे ही 12 बजे का समय आया, मंदिरों के शंख, गुरुद्वारों की अरदास और मस्जिदों की दुआ एक साथ गूंज उठी। बच्चों ने पटाखे फोड़े, ढोल-नगाड़ों की थाप पर लोग नाचने लगे और घरों की छतों से फूलों की बारिश हुई। ब्रिटिश यूनियन जैक झंडे उतार दिए गए और जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्र को संबोधित किया।
15 अगस्त की सुबह से ही आनंद भवन, स्वराज भवन और मेडिकल कालेज परिसर (तब गवर्नर हाउस) पर लोगों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। तत्कालीन शिक्षा मंत्री डॉ. संपूर्णानंद ने कार से लखनऊ से आकर तिरंगा फहराया और परेड की सलामी ली। भीड़ इतनी थी कि लोग सुबह सात बजे से पहले ही कार्यक्रम स्थल पर पहुंच गए थे। सुबह 9:30 बजे तिरंगे के नीचे वैदिक मंत्रोच्चार, हवन और कीर्तन के बीच तलवार पूजन हुआ। हाईकोर्ट परिसर में मुख्य न्यायाधीश ने तिरंगा फहराया और नैनी जेल से 100 से अधिक कैदियों को रिहा किया गया। शहर भर में मुशायरे, कवि सम्मेलन, नौटंकी, रामलीला और जादूगर के कार्यक्रम आयोजित किए गए।
सिनेमाघरों में मुफ्त सिनेमा दिखाया गया और कीर्तन टोलियां पूरे शहर में घूमती रहीं। बमरौली हवाईअड्डे पर नवगठित हिंद प्रोविंशियल फ्लाइंग क्लब के विमानों ने आसमान में करतब दिखाए। चौक और कटरा बाजारों में मिठाईयों की मांग बढ़ गई और तिरंगे की खरीद-फरोख्त चरम पर थी। स्वतंत्रता सेनानियों और उनके परिवारों को सम्मानित किया गया, जेल से लौटे क्रांतिकारियों का स्वागत किया गया और कर्मचारियों को बोनस और महंगाई भत्ते बांटे गए। राय साहब राज किशोर सिन्हा ने अंग्रेजों द्वारा दी गई उपाधि ‘राय साहब’ को हटा दिया।