बांग्लादेश में 12 फरवरी 2026 को होने वाले संसदीय चुनाव दक्षिण एशिया की राजनीति में एक बड़ा मोड़ साबित हो सकते हैं। 300 सीटों पर होने वाले इस चुनावी मुकाबले में इस बार सीधी टक्कर खालिदा जिया की पार्टी BNP और कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी के बीच मानी जा रही है।
लेकिन इस चुनाव के पीछे एक गहरी और विवादास्पद पटकथा लिखी जा रही है, जिसके तार सीधे पाकिस्तान से जुड़ते दिख रहे हैं। हाल के घटनाक्रम और तारीखें इस बात की ओर इशारा करती हैं कि पाकिस्तान, बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी की सत्ता वापसी के लिए सक्रिय रूप से 'स्क्रिप्ट' लिख रहा है।
तारीखों के आईने में पाकिस्तान की सक्रियता
पाकिस्तान और जमात-ए-इस्लामी के बीच बढ़ती नजदीकियों को इन प्रमुख तारीखों से समझा जा सकता है:
24 अगस्त: 17 साल बाद बड़ा दौरा
पाकिस्तान के डिप्टी पीएम और विदेश मंत्री इशाक डार का बांग्लादेश दौरा कूटनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बना। यह 17 साल में किसी पाकिस्तानी विदेश मंत्री का पहला दौरा था।
-
डार ने न केवल आधिकारिक मुलाकातें कीं, बल्कि वे जमात-ए-इस्लामी के मुखिया अमीर शफीकुर रहमान के आवास पर भी गए।
-
पाकिस्तान हाई कमीशन में जमात के एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल के साथ लंबी बैठक हुई, जिसने भविष्य के राजनीतिक गठजोड़ की नींव रखी।
9 और 10 सितंबर: गठबंधन की बुनावट
पाकिस्तानी राजदूत इमरान हैदर ने कूटनीतिक मर्यादाओं से परे जाकर सीधे राजनीतिक हस्तक्षेप के संकेत दिए।
-
9 सितंबर को उन्होंने जमात चीफ शफीकुर से मुलाकात की।
-
अगले ही दिन, 10 सितंबर को उन्होंने छात्र संगठन NCP (नेशनल सिटिजन पार्टी) के संयोजक नाहिद इस्लाम की मेजबानी की। चर्चा है कि इसी मुलाकात में पाकिस्तान ने नाहिद पर जमात के साथ गठबंधन करने का दबाव बनाया।
28 दिसंबर: 'पाकिस्तान समर्थित' महागठबंधन का एलान
साल के अंत तक पाकिस्तान की मेहनत रंग लाती दिखी। जमात-ए-इस्लामी ने NCP और LDP समेत 8 अन्य दलों के साथ चुनावी गठबंधन की घोषणा कर दी। जमात के नेता शफीकुर रहमान ने ढाका प्रेस क्लब में इस महागठबंधन का एलान किया।
जमात-ए-इस्लामी का काला इतिहास
भारत और बांग्लादेश के उन लोगों के लिए यह गठबंधन चिंता का विषय है जो इतिहास जानते हैं। जमात-ए-इस्लामी वही पार्टी है जिसने 1971 के मुक्ति संग्राम में बांग्लादेश की आजादी का विरोध किया था।
-
जमात ने पाकिस्तानी सेना की मदद के लिए 'रजाकार' जैसे क्रूर संगठन बनाए थे।
-
उन पर लाखों हिंदुओं और बुद्धिजीवियों की हत्या तथा बड़े पैमाने पर बलात्कार के आरोप हैं।
-
युद्ध अपराधों के लिए इस पार्टी के कई शीर्ष नेताओं को बांग्लादेश की अदालतों ने फांसी की सजा सुनाई है।
निष्कर्ष: भारत के लिए क्या है संकेत?
पाकिस्तान का जमात-ए-इस्लामी और छात्र संगठनों (NCP) को एक मंच पर लाना यह दर्शाता है कि वह बांग्लादेश में एक 'प्रो-पाकिस्तान' और 'एंटी-इंडिया' सरकार चाहता है। यदि जमात समर्थित यह गठबंधन 2026 में सत्ता में आता है, तो यह न केवल बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों के लिए खतरा होगा, बल्कि पूरे क्षेत्र की सुरक्षा और भारत-बांग्लादेश संबंधों के लिए भी एक बड़ी चुनौती साबित हो सकता है।