देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से जुड़े ऐतिहासिक दस्तावेजों को लेकर एक नया राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है। केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने स्पष्ट किया है कि नेहरू के निजी कागजात (Nehru Papers) प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय (PMML) से "गायब" नहीं हुए हैं, बल्कि उन्हें 2008 में एक आधिकारिक प्रक्रिया के तहत गांधी परिवार को सौंपा गया था। अब सरकार ने इन दस्तावेजों को 'राष्ट्रीय धरोहर' बताते हुए सोनिया गांधी से इन्हें वापस लौटाने की मांग की है।
यहाँ इस विवाद और नेहरू पेपर्स के ऐतिहासिक महत्व पर आधारित विस्तृत रिपोर्ट दी गई है:
नेहरू पेपर्स विवाद: निजी संपत्ति बनाम राष्ट्रीय धरोहर
दिसंबर 2025 में शुरू हुई यह बहस ऐतिहासिक पारदर्शिता और राजनीतिक नैतिकता के इर्द-गिर्द घूम रही है। केंद्रीय मंत्री शेखावत का दावा है कि नेहरू से जुड़ी चिट्ठियां, डायरियां और महत्वपूर्ण नोट्स अब सोनिया गांधी के पास हैं, जिन्हें सार्वजनिक किया जाना अनिवार्य है।
1. 51 कार्टन का रहस्य और 2008 का आधिकारिक हस्तांतरण
सरकार के अनुसार, जवाहरलाल नेहरू के निजी अभिलेखों के 51 कार्टन 2008 में गांधी परिवार के अनुरोध पर उन्हें लौटाए गए थे।
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दस्तावेजों में क्या है? इन बक्सों में नेहरू की व्यक्तिगत चिट्ठियां, महत्वपूर्ण डायरियां और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की जानी-मानी हस्तियों के साथ किए गए पत्राचार शामिल हैं।
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रिकॉर्ड की पुष्टि: पीएमएमएल के पास आज भी इन दस्तावेजों का पूरा कैटलॉग और रसीद मौजूद है, जो यह साबित करता है कि दस्तावेज गांधी परिवार के पास सुरक्षित हैं।
2. पत्राचार और गांधी परिवार का 'लिखित वचन'
शेखावत ने खुलासा किया कि इन ऐतिहासिक अभिलेखों को वापस पाने के लिए सरकार ने कई प्रयास किए हैं।
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जनवरी और जुलाई 2025 में पीएमएमएल की ओर से सोनिया गांधी को औपचारिक पत्र भेजे गए थे।
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सोनिया गांधी की स्वीकारोक्ति: मंत्री के अनुसार, सोनिया गांधी ने स्वयं लिखित रूप में स्वीकार किया है कि ये दस्तावेज उनके पास हैं और उन्होंने सहयोग का आश्वासन भी दिया था, लेकिन अब तक वे कागजात वापस नहीं किए गए हैं।
3. इतिहास के निष्पक्ष अध्ययन की मांग
सरकार का तर्क है कि नेहरू केवल एक परिवार के सदस्य नहीं, बल्कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री थे। इसलिए उनसे जुड़े दस्तावेज किसी के निजी घर में नहीं, बल्कि सार्वजनिक अभिलेखागार (National Archives) में होने चाहिए।
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शोधकर्ताओं के लिए महत्व: ऐतिहासिक अभिलेखों तक पहुंच न होने से विद्वान और विद्यार्थी उस दौर के सत्य का निष्पक्ष अध्ययन नहीं कर पा रहे हैं।
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लोकतांत्रिक पारदर्शिता: शेखावत ने जोर देकर कहा कि इतिहास को चुनिंदा तरीके से नहीं पेश किया जा सकता। पारदर्शिता लोकतंत्र की बुनियाद है, और इन दस्तावेजों का सार्वजनिक होना एक नैतिक दायित्व है।
4. जयराम रमेश को शेखावत की सलाह
कांग्रेस नेता जयराम रमेश द्वारा लगाए गए आरोपों पर पलटवार करते हुए शेखावत ने कहा कि रमेश को तथ्यहीन बातें करने के बजाय सोनिया गांधी को अपना वचन निभाने के लिए कहना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि कांग्रेस को नेहरू के दौर के "सत्य" को पारदर्शी अध्ययन के लिए उपलब्ध कराना चाहिए।