कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार (9 दिसंबर) को राज्य सरकार द्वारा 20 नवंबर को जारी की गई पेड मासिक धर्म अवकाश (Paid Menstrual Leave) अधिसूचना पर अंतरिम रोक लगा दी है। यह अधिसूचना राज्य में कार्यरत महिला कर्मचारियों को हर महीने एक दिन का सवेतन मासिक धर्म अवकाश देने के लिए जारी की गई थी।
यह रोक जस्टिस ज्योति एम. की बेंच ने बैंगलोर होटल्स एसोसिएशन और अविराता एएफएल कनेक्टिविटी सिस्टम्स द्वारा दायर एक याचिका के आधार पर लगाई है। याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में यह दलील दी कि कर्नाटक सरकार ने ऐसे महत्वपूर्ण प्रावधान करने से पहले उनसे परामर्श (Consultation) नहीं किया।
क्या था सरकारी आदेश?
कर्नाटक सरकार ने 9 नवंबर को जारी अपनी अधिसूचना में स्थायी, संविदा और आउटसोर्स नौकरियों में काम करने वाली 18 से 52 साल की उम्र की महिला कर्मचारियों को यह सवेतन अवकाश देने का प्रावधान किया था।
यह अवकाश निम्नलिखित अधिनियमों के तहत पंजीकृत सभी उद्योगों और प्रतिष्ठानों में कार्यरत महिलाओं के लिए था:
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कारखाना अधिनियम, 1948
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कर्नाटक दुकान एवं वाणिज्यिक प्रतिष्ठान अधिनियम, 1961
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बागान श्रमिक अधिनियम, 1951
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बीड़ी एवं सिगार श्रमिक (रोजगार की शर्तें) अधिनियम, 1966
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मोटर परिवहन श्रमिक अधिनियम, 1961
सरकार ने 2 दिसंबर को राज्य की सरकारी महिला कर्मचारियों को भी तत्काल प्रभाव से हर महीने एक दिन का माहवारी अवकाश देने का आदेश दिया था।
मासिक धर्म अवकाश पर विवाद
मासिक धर्म अवकाश को लेकर राज्य में विवाद खड़ा हो गया था। बैंगलोर होटल एसोसिएशन (BHA) ने कर्नाटक हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें उन्होंने राज्य सरकार के नवंबर के निर्देश को चुनौती दी। एसोसिएशन की मुख्य आपत्ति यह थी कि यह प्रावधान व्यापारिक प्रतिष्ठानों और उद्योगों पर अतिरिक्त बोझ डालेगा, और बिना किसी पूर्व चर्चा के थोपा गया है।
<h3>अन्य राज्यों में स्थिति</h3>
कर्नाटक में हालांकि इस अधिसूचना पर अंतरिम रोक लग गई है, लेकिन भारत के कुछ अन्य राज्यों में पहले से ही पेड मासिक धर्म अवकाश की सुविधा मौजूद है:
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केरल: केरल में आईटीआई की महिला प्रशिक्षुओं (ट्रेनी) के लिए प्रति माह 2 दिनों का पेड मेंस्ट्रुअल लीव दी जाती है।
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बिहार और ओडिशा: इन राज्यों में राज्य कर्मचारियों के लिए साल में 12 दिनों का पेड मेंस्ट्रुअल लीव दिया जाता है।
मासिक धर्म अवकाश का मुद्दा लंबे समय से बहस का विषय रहा है, जहां एक ओर इसे महिला स्वास्थ्य और अधिकारों के लिए आवश्यक माना जाता है, वहीं दूसरी ओर कुछ नियोक्ता और हितधारक इसे रोजगार देने में भेदभाव को बढ़ावा देने वाला मानते हैं। कर्नाटक हाईकोर्ट का यह अंतरिम रोक लगाने का फैसला अब इस अधिसूचना की संवैधानिक और कानूनी वैधता पर अंतिम निर्णय आने तक प्रभावी रहेगा।