प्रयागराज न्यूज डेस्क: अभिजीत घोषाल का सफर सच में प्रेरणा देता है। हम बात कर रहे हैं एक ऐसे कलाकार की, जिसने न सिर्फ गाना सीखा बल्कि उसे जिया भी। ‘सारेगामापा’ में लगातार 11 जीत और 12वीं बार जीतकर प्रतियोगिता छोड़ देना—यह बताता है कि उनकी प्रतिभा कितनी बड़ी है। बंगाली ‘सारेगामापा’ में एंकरिंग और हिंदी वाले शो में जूरी रहना उनके अनुभव की गहराई दिखाता है।
बॉलीवुड में भी अभिजीत ने अपनी मजबूत छाप छोड़ी है। फिल्म ‘लंदन ड्रीम्स’ का मशहूर गीत ‘जश्न है जीत का’ उनकी आवाज़ में आज भी याद किया जाता है। पढ़ाई में टॉपर रहना, स्टेट बैंक में प्रोबेशनरी ऑफिसर की नौकरी करना और फिर सब छोड़कर संगीत को अपनाना—ये निर्णय उनकी जुनून भरी सोच को दिखाता है। 17 भारतीय भाषाओं में गाना और दुनिया के कई देशों में प्रस्तुति देना, ये सफर किसी भी कलाकार के लिए बड़ा मुकाम है।
अभिजीत सिर्फ कलाकार नहीं, बल्कि समाज के लिए हमेशा आगे रहने वाले इंसान हैं। वे सालों से कैंसर मरीजों के बीच जाकर गाते हैं और दुख के पलों में लोगों के लिए हिम्मत बनते हैं। वाराणसी केंद्रीय कारागार में 1750 कैदियों के सामने दो घंटे की प्रस्तुति हो या सेना के जवानों के बीच मनोबल बढ़ाने वाले कार्यक्रम—हर जगह वे अपने संगीत से जुड़ाव पैदा करते हैं।
भजनों की दुनिया में भी उनका योगदान कमाल का है। ‘भजन प्रवाह’ कार्यक्रम के साथ काशी विश्वनाथ, अयोध्या राम मंदिर, वैष्णो देवी, इस्कॉन मुंबई से लेकर जैन मंदिरों तक 75 से ज्यादा प्रस्तुतियां देना आसान नहीं। 2025 में उनके भजन ‘डमरू बजाए’ को बेस्ट डिवोशनल सॉन्ग का अवॉर्ड मिला, जो उनके समर्पण का प्रमाण है। अभिजीत आज एक गायक, संगीतकार, निर्देशक और गीतकार—सब कुछ हैं, और यह बहुमुखी प्रतिभा ही उन्हें खास बनाती है।