मुंबई, 5 सितम्बर, (न्यूज़ हेल्पलाइन) क्या आपने कभी सोचा है कि मातम और शोक के माहौल में जश्न के रंग कैसे घुल सकते हैं? ताइवान में अंतिम संस्कार के जुलूसों में नाचने वाली स्ट्रिपर्स का चलन एक ऐसा ही विरोधाभासी और आश्चर्यजनक सांस्कृतिक पहलू है। यह प्रथा, जिसे 'शोक का नाच' (Dancing at Funerals) कहा जाता है, शुरुआत में एक प्राचीन धार्मिक परंपरा थी, लेकिन बाद में इसने एक बिल्कुल नया और विवादास्पद रूप ले लिया।
यह कहानी लगभग 1980 के दशक से शुरू होती है, जब ताइवान के माफिया समूहों ने इस प्रथा को व्यावसायिक रूप दिया। उन्होंने अंतिम संस्कार सेवाओं के बड़े हिस्से पर नियंत्रण कर लिया था और अपने ही नाइट क्लबों की स्ट्रिपर्स को कम कीमत पर पेश करना शुरू कर दिया। इसका मकसद सिर्फ मुनाफा कमाना नहीं था, बल्कि अपनी शक्ति और प्रभाव को प्रदर्शित करना भी था। एक तरह से, यह दिखावा था कि दिवंगत व्यक्ति का परिवार इतना शक्तिशाली और धनी है कि वे इतनी भव्य विदाई का आयोजन कर सकते हैं। यह परंपरा जल्द ही ताइवान की ग्रामीण और शहरी दोनों जगहों में फैल गई।
यह प्रदर्शन अक्सर इलेक्ट्रिक फ्लावर कार (Electric Flower Cars) पर होता है, जो रंग-बिरंगी रोशनी और फूलों से सजी हुई चलती-फिरती स्टेज होती हैं। ये गाड़ियाँ अंतिम संस्कार के जुलूस के साथ चलती हैं और कलाकार उन पर पोल डांस करते हैं। इन गाड़ियों को कई बार मनोरंजन और व्यावसायिक कार्यक्रमों में भी देखा जाता है, लेकिन इनका सबसे ज्यादा इस्तेमाल अंतिम संस्कार में होता है।
यह चलन एक ओर धार्मिक और सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ा है, जहाँ माना जाता है कि ऐसा प्रदर्शन दिवंगत आत्मा को खुश करता है और उसे शांति से दूसरी दुनिया में जाने में मदद करता है। वहीं, दूसरी ओर, यह आधुनिक समाज में नैतिकता और सम्मान को लेकर बहस छेड़ता है। हालाँकि, यह अजीब लग सकता है, लेकिन यह ताइवान की एक अनूठी और गहरी जड़ें जमा चुकी सांस्कृतिक पहचान बन गया है।
कुछ लोगों का मानना है कि यह परंपरा एक तरह से शोक को हल्का करने और जीवन का जश्न मनाने का तरीका है। हालाँकि, सरकार ने इस पर रोक लगाने के कई प्रयास किए हैं, लेकिन यह चलन आज भी जारी है और ताइवान के समाज में अपनी जगह बनाए हुए है। यह एक ऐसा उदाहरण है जो दिखाता है कि कैसे धार्मिक रीति-रिवाज, व्यावसायिक हित और सामाजिक प्रदर्शन मिलकर एक बिल्कुल नई और अप्रत्याशित परंपरा को जन्म दे सकते हैं।