भारत इस समय एक ऐसे संकट के मुहाने पर खड़ा है जो शोर नहीं मचाता, लेकिन जिसकी आहट डरावनी है। यह संकट है—तेजी से खत्म होता भूजल (Groundwater)। संसद में सरकार द्वारा पेश किए गए हालिया आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि हम अपनी आने वाली पीढ़ियों का हिस्सा भी आज ही खर्च कर रहे हैं। बिना किसी आपातकाल की घोषणा के, भारत के कई हिस्सों में 'डे जीरो' (जब नल से पानी आना बंद हो जाए) जैसी स्थिति बन रही है।
आंकड़ों की जुबानी: पानी का बजट और खर्च
सरकारी आकलन के अनुसार, भारत में प्रतिवर्ष वर्षा और अन्य प्राकृतिक स्रोतों से जमीन के नीचे लगभग 448 अरब घन मीटर (BCM) पानी का पुनर्भरण (Recharge) होता है। हालांकि, तकनीकी सीमाओं के कारण इसमें से केवल 407 BCM ही इस्तेमाल के योग्य माना जाता है।
चिंताजनक बात यह है कि साल 2025 में भारत ने अपनी कुल क्षमता का लगभग 61 प्रतिशत, यानी 247 अरब घन मीटर भूजल निकाल लिया है। देखने में 61 प्रतिशत का आंकड़ा सुरक्षित लग सकता है, लेकिन क्षेत्रीय स्तर पर यह स्थिति भयावह है।
हर 10 में से 1 इलाका 'डेंजर जोन' में
देश के कुल 6762 ब्लॉकों (तहसील/मंडल) के विश्लेषण से जो तस्वीर उभरी है, वह डराने वाली है:
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अत्यधिक दोहन (Over-exploited): 730 इलाके ऐसे हैं जहाँ पुनर्भरण की तुलना में पानी की निकासी बहुत ज्यादा है। यहाँ बोरवेल हर साल और गहरे होते जा रहे हैं।
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गंभीर (Critical): 201 इलाके इस श्रेणी में हैं, जहाँ पानी का स्तर तेजी से गिर रहा है।
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चेतावनी (Semi-critical): 758 इलाके खतरे की सीमा पर खड़े हैं।
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सुरक्षित (Safe): 4946 इलाके फिलहाल सुरक्षित हैं, लेकिन बढ़ते शहरीकरण के कारण यहाँ भी दबाव बढ़ रहा है।
पानी है, लेकिन क्या वह पीने लायक है?
केवल पानी की मात्रा ही समस्या नहीं है, बल्कि उसकी गुणवत्ता भी एक बड़ा संकट बन चुकी है। सरकार के मुताबिक 73 प्रतिशत इलाके 'सुरक्षित' श्रेणी में जरूर हैं, लेकिन इनमें से कई जगहों पर भूजल अब 'धीमा जहर' बन चुका है।
भूजल में पाए जाने वाले जहरीले तत्व:
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आर्सेनिक: कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों का कारण।
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फ्लोराइड: दांतों और हड्डियों को कमजोर कर विकलांगता (Fluorosis) पैदा करता है।
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नाइट्रेट: नवजात बच्चों के लिए अत्यंत खतरनाक (Blue Baby Syndrome)।
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खारापन: कई इलाकों में पानी इतना खारा हो चुका है कि वह न खेती के काम आ सकता है और न ही उद्योग के।
सरकारी प्रयास बनाम कड़वी हकीकत
सरकार का दावा है कि 'जल शक्ति अभियान' और 'अमृत सरोवर' जैसे प्रोजेक्ट्स के तहत करोड़ों जल संरक्षण संरचनाएं बनाई गई हैं। हजारों नए तालाब और चेक डैम तैयार हुए हैं। लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि देश के केवल 54 प्रतिशत कुओं में ही जल स्तर बढ़ा है। इसका सीधा मतलब है कि देश का लगभग आधा हिस्सा अब भी भूजल की भारी किल्लत और गिरते स्तर से जूझ रहा है।
निष्कर्ष: अब नहीं जागे तो बहुत देर हो जाएगी
खेती और पीने के पानी की जरूरतें अब एक-दूसरे के सामने खड़ी हैं। शहरों में 'टैंकर माफिया' का बढ़ता प्रभाव और ग्रामीण इलाकों में सूखते बोरवेल इस बात का संकेत हैं कि हम प्रकृति के बैंक अकाउंट से 'ओवरड्राफ्ट' कर रहे हैं। यदि हमने वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting) को अनिवार्य नहीं बनाया और पानी के अंधाधुंध इस्तेमाल पर रोक नहीं लगाई, तो वह दिन दूर नहीं जब पानी की एक-एक बूंद के लिए संघर्ष आम हो जाएगा।