कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) ने करोड़ों नौकरीपेशा लोगों और उनके परिवारों के हित में एक क्रांतिकारी बदलाव किया है। अक्सर देखा जाता है कि एक कंपनी से दूसरी कंपनी में स्विच करते समय बीच में आने वाले वीकेंड या सरकारी छुट्टियाँ तकनीकी रूप से 'सर्विस ब्रेक' मान ली जाती थीं। इस छोटी सी तकनीकी खामी की वजह से कई बार कर्मचारियों के परिवारों को बीमा और पेंशन जैसे बड़े लाभों से वंचित रहना पड़ता था। अब EPFO ने एक नया सर्कुलर जारी कर इस समस्या को हमेशा के लिए खत्म कर दिया है।
सर्विस ब्रेक की समस्या और परिवारों पर असर
EPFO के नियमों के तहत, कर्मचारी की मृत्यु की स्थिति में उसके परिवार को एम्प्लॉइज डिपॉजिट लिंक्ड इंश्योरेंस (EDLI) के तहत ₹7 लाख तक की बीमा राशि मिलती है। इसके लिए शर्त यह होती है कि कर्मचारी की सर्विस 'कंटीन्यूअस' यानी लगातार होनी चाहिए।
पुराने सिस्टम में यदि किसी कर्मचारी ने शुक्रवार को एक कंपनी छोड़ी और सोमवार को दूसरी कंपनी जॉइन की, तो बीच के शनिवार और रविवार को 'सर्विस ब्रेक' के तौर पर देखा जाता था। दुर्भाग्यवश, यदि इस दौरान या नई नौकरी के शुरुआती दिनों में कर्मचारी के साथ कोई अनहोनी हो जाती थी, तो अधिकारी अक्सर यह कहकर क्लेम खारिज कर देते थे कि सर्विस में निरंतरता नहीं थी।
नए सर्कुलर की मुख्य बातें: क्या बदला है?
EPFO द्वारा जारी ताज़ा दिशा-निर्देशों के अनुसार, अब सर्विस की गणना करते समय मानवीय और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया जाएगा:
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छुट्टियों को मिलेगी मान्यता: एक नौकरी छोड़ने और दूसरी जॉइन करने के बीच यदि शनिवार, रविवार, नेशनल हॉलीडे (जैसे 15 अगस्त, 26 जनवरी), गजटेड हॉलीडे या राज्य सरकार द्वारा घोषित छुट्टियाँ आती हैं, तो उसे 'निरंतर सेवा' (Continual Service) माना जाएगा।
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60 दिनों तक का ग्रेस पीरियड: सबसे बड़ी राहत यह दी गई है कि यदि दो नौकरियों के बीच 60 दिनों तक का अंतर भी होता है, तब भी सर्विस को टूटा हुआ नहीं माना जाएगा। यह उन लोगों के लिए वरदान है जिन्हें नई नौकरी जॉइन करने में थोड़ा समय लगता है।
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क्लेम सेटलमेंट में आसानी: इस स्पष्टता के बाद अब फील्ड ऑफिसर्स अपनी मर्ज़ी से डेथ क्लेम को खारिज नहीं कर पाएंगे। इससे कानूनी विवाद कम होंगे और पीड़ित परिवारों को समय पर आर्थिक मदद मिल सकेगी।
EDLI स्कीम और कर्मचारियों का फायदा
यह फैसला सीधे तौर पर EDLI (Employees' Deposit Linked Insurance) योजना को मजबूती देता है। इस योजना के तहत:
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कर्मचारी को कोई प्रीमियम नहीं देना होता (इसका भुगतान कंपनी करती है)।
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सेवा के दौरान मृत्यु होने पर आश्रितों को कम से कम ₹2.5 लाख और अधिकतम ₹7 लाख तक मिलते हैं।
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अब 'कंटीन्यूअस सर्विस' की नई परिभाषा से यह सुनिश्चित होगा कि मामूली तकनीकी कारणों से किसी गरीब परिवार का हक न मारा जाए।
निष्कर्ष: एक संवेदनशील कदम
EPFO का यह कदम कार्यस्थल पर बदलती परिस्थितियों और कर्मचारियों की मोबाइल कार्यशैली को ध्यान में रखकर लिया गया है। अक्सर अधिकारी नियमों की लकीर पीटते थे, जिसका खामियाजा उन परिवारों को भुगतना पड़ता था जिन्होंने अपना कमाने वाला सदस्य खो दिया है। अब, 60 दिनों की अवधि और छुट्टियों को शामिल करने के फैसले से सिस्टम में पारदर्शिता और संवेदनशीलता आएगी।
यह बदलाव न केवल डेथ क्लेम बल्कि पेंशन (EPS) की पात्रता के लिए भी महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। सरकार का यह प्रयास 'ईज ऑफ लिविंग' की दिशा में एक बड़ा सुधार है।