मुंबई, 26 जुलाई, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल आनंद बोस ने ममता बनर्जी सरकार द्वारा विधानसभा में पारित 'अपराजिता वुमन एंड चाइल्ड बिल 2024' को वापस लौटा दिया है। राजभवन सूत्रों के अनुसार, केंद्र सरकार ने इस बिल पर गंभीर आपत्तियां जताई हैं। केंद्र का कहना है कि यह बिल भारतीय न्याय संहिता की कई धाराओं में हस्तक्षेप करता है और दुष्कर्म जैसे अपराधों में अत्यधिक सख्त सजा का प्रस्ताव रखता है। बिल को पहले 6 सितंबर 2024 को राज्यपाल ने राष्ट्रपति के पास भेजा था, लेकिन उसी समय उन्होंने इसमें कई कानूनी और संवैधानिक खामियों की ओर इशारा किया था। यह विधेयक 9 अगस्त 2024 को कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में एक ट्रेनी डॉक्टर के साथ हुई रेप और हत्या की घटना के बाद लाया गया था, जिसने पूरे राज्य में महिला सुरक्षा को लेकर सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े कर दिए थे। ममता सरकार ने 3 सितंबर को यह बिल विधानसभा में पेश किया, जिसके तहत रेप मामलों की जांच 21 दिनों के भीतर पूरी करने की बाध्यता शामिल थी।
राज्यपाल ने जिन तीन प्रावधानों पर विशेष आपत्ति जताई है, उनमें रेप मामलों में सीधी फांसी या उम्रकैद, 12 और 16 साल की बच्चियों के बीच का अंतर समाप्त करना, और यदि पीड़िता की मौत हो जाए या वह कोमा में चली जाए, तो अनिवार्य फांसी की सजा शामिल है। बिल के तहत यह भी प्रावधान किया गया है कि रेप के दोषियों को उम्रकैद दी जाए तो उन्हें पूरी उम्र जेल में रहना होगा और उन्हें पैरोल या माफी नहीं मिलेगी। बिल के ड्राफ्ट में भारतीय न्याय संहिता की कई धाराओं को संशोधित करने और कुछ को हटाने का प्रस्ताव दिया गया है, जिसमें सेक्शन 64, 66, 70(1), 71, 72(1), 73, 124(1), 124(2) और अन्य शामिल हैं। इन संशोधनों का उद्देश्य रेप, गैंगरेप, पीड़ित की पहचान उजागर करना और एसिड अटैक जैसे मामलों में सजा को सख्त बनाना है।
बिल के अनुसार, रेप या गैंगरेप के मामलों की जांच 21 दिनों के भीतर पूरी की जानी चाहिए, जिसे सिर्फ विशेष परिस्थितियों में 15 दिन के लिए बढ़ाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए उच्च अधिकारी को लिखित कारण केस डायरी में दर्ज करना होगा। आदतन अपराधियों को भी उम्रकैद की सजा दी जाएगी और उन्हें पूरी जिंदगी जेल में रहना होगा। राज्य सरकार ने जिला स्तर पर ‘अपराजिता टास्क फोर्स’ के गठन का प्रस्ताव भी रखा है, जिसकी अगुवाई डीएसपी स्तर के अधिकारी करेंगे और ये विशेष रूप से ऐसे मामलों की जांच में तैनात होंगे। न्याय में तेजी और पीड़िता के मानसिक आघात को कम करने के लिए विशेष अदालतें और जांच टीमें बनाने का भी प्रावधान किया गया है, जिन्हें जरूरी संसाधन और विशेषज्ञ मुहैया कराए जाएंगे।
बिल में कोर्ट की कार्यवाही की मीडिया रिपोर्टिंग को लेकर भी नियम बनाए गए हैं, जिसके तहत कोई भी प्रकाशन या प्रसारण कोर्ट की अनुमति के बिना नहीं किया जा सकता। इसका उल्लंघन करने पर तीन से पांच साल की जेल और जुर्माने की सजा का प्रस्ताव रखा गया है। चूंकि आपराधिक कानून समवर्ती सूची में आता है, इसलिए राज्य सरकार द्वारा बनाए गए इस कानून को पहले राज्यपाल और फिर राष्ट्रपति की मंजूरी आवश्यक होती है। भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची में समवर्ती सूची के तहत केंद्र और राज्य दोनों को कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन यदि दोनों के कानूनों में टकराव होता है तो केंद्र का कानून मान्य होता है। वर्तमान में समवर्ती सूची में कुल 52 विषय शामिल हैं।