तेलंगाना की रेवंत रेड्डी सरकार को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए राज्य में आरक्षण सीमा बढ़ाने के अपने फैसले पर सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को तेलंगाना उच्च न्यायालय के उस अंतरिम स्थगन आदेश को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें ओबीसी समुदायों के लिए बढ़े हुए 50 प्रतिशत आरक्षण को लागू करने पर रोक लगा दी गई थी। यह मामला तेलंगाना सरकार द्वारा राज्य में ओबीसी आरक्षण की सीमा को 50 प्रतिशत तक बढ़ाए जाने के निर्णय से जुड़ा है। राज्य सरकार के इस कदम को तेलंगाना उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी, जहां उच्च न्यायालय ने इस फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी थी। उच्च न्यायालय ने माना था कि यह कदम संभवतः उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित 50% आरक्षण की सीमा का उल्लंघन कर सकता है, जब तक कि राज्य इसे उचित ठहराने के लिए अपवाद की श्रेणी में न आए।
सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप से किया इनकार
उच्च न्यायालय के इस स्थगन आदेश के बाद, रेवंत रेड्डी सरकार ने तत्काल राहत पाने के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाने से इनकार करते हुए तेलंगाना सरकार की याचिका को खारिज कर दिया। शीर्ष न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि उच्च न्यायालय का अंतरिम स्थगन आदेश फिलहाल बना रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उच्च न्यायालय पहले ही इस मामले की सुनवाई कर रहा है और आरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दे पर अंतरिम चरण में हस्तक्षेप करना उचित नहीं होगा। अदालत ने राज्य सरकार को यह भी निर्देश दिया कि वह उच्च न्यायालय के समक्ष जल्द से जल्द अपनी बात रखे और मामले की त्वरित सुनवाई के लिए अनुरोध करे।
राजनीतिक और कानूनी निहितार्थ
रेवंत रेड्डी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के लिए यह फैसला एक बड़ा राजनीतिक झटका है। ओबीसी आरक्षण को 50 प्रतिशत तक बढ़ाना सत्ता में आने के बाद सरकार के प्रमुख चुनावी वादों में से एक था, जिसका उद्देश्य राज्य के एक बड़े और प्रभावशाली सामाजिक वर्ग को लाभ पहुंचाना था। इस फैसले पर रोक लगने से सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने की गति प्रभावित हो सकती है। कानूनी दृष्टिकोण से, यह मामला इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ (1992) मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा के कानूनी दायरे के इर्द-गिर्द घूमता है। इस ऐतिहासिक फैसले में, शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया था कि कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए, सिवाय "असाधारण परिस्थितियों" के।
तेलंगाना सरकार को अब उच्च न्यायालय के समक्ष यह साबित करना होगा कि राज्य में ओबीसी को 50 प्रतिशत आरक्षण देने की आवश्यकता असाधारण और न्यायसंगत है। उच्च न्यायालय ने इस मामले में सभी संबंधित पक्षों को नोटिस जारी कर दिया है और अब राज्य सरकार को अपनी कानूनी लड़ाई उच्च न्यायालय में लड़नी होगी ताकि वह अपने फैसले को बचा सके। तेलंगाना सरकार के इस आरक्षण वृद्धि के पीछे का तर्क यह था कि राज्य में पिछड़े वर्गों की आबादी और उनकी सामाजिक-शैक्षणिक स्थिति को देखते हुए मौजूदा आरक्षण पर्याप्त नहीं था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के ताजा झटके के बाद, राज्य में बढ़ी हुई आरक्षण सीमा को लागू करने का भविष्य अब उच्च न्यायालय के अंतिम फैसले पर निर्भर करेगा।