भारत और चीन के रिश्ते लंबे समय से अविश्वास और तनाव की छाया में रहे हैं। एक ओर चीन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के साथ सहयोग और संवाद की बात करता है, तो दूसरी ओर सीमा के पास अपने सैन्य ढांचे को लगातार मजबूत कर रहा है। ड्रैगन का यह दोहरे चेहरे वाला रवैया एक बार फिर उजागर हुआ है। ताज़ा उपग्रह तस्वीरों और सैन्य रिपोर्ट्स से पता चलता है कि चीन तिब्बत के नजदीक वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर अपनी उपस्थिति तेज़ी से बढ़ा रहा है।
सीमा पर रसद और कनेक्टिविटी बढ़ाने में जुटा चीन
जानकारी के मुताबिक, चीन एलएसी से लगे इलाकों में सैन्य लॉजिस्टिक्स, सड़क नेटवर्क, संचार प्रणाली और सैनिकों की तैनाती को अपग्रेड कर रहा है। एलएसी पर चीन की सेना PLA लगातार नई सड़कें, सुरंगें, पुल और सैन्य चौकियां तैयार कर रही है ताकि जरूरत पड़ने पर किसी भी क्षेत्र में तेजी से सैनिक भेजे जा सकें। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, तिब्बती क्षेत्र में चीन का यह विस्तार सीधे तौर पर रणनीतिक दबाव बनाने की कोशिश है। यह वही नीति है जिसे विशेषज्ञ चीन की "सालामी स्लाइसिंग" रणनीति बताते हैं — यानी धीरे-धीरे कब्ज़े और नियंत्रण को बढ़ाना।
2017 और 2020 की झड़पें अभी भी ताजा यादें
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद कोई नई बात नहीं है। 2017 के डोकलाम संघर्ष और 2020 के गलवान घाटी की हिंसक झड़प ने दोनों देशों के रिश्तों को दशकों पीछे धकेल दिया। जहां दोनों पक्ष कई दौर की सैन्य और राजनयिक वार्ता के बाद तनाव कम करने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं चीन द्वारा सीमा पर बढ़ती गतिविधियाँ इन वार्ताओं की नीयत पर सवाल उठा रही हैं। भारतीय विशेषज्ञों का कहना है कि चीन का यह रवैया बताता है कि वह बातचीत को सिर्फ औपचारिकता मानता है, जबकि जमीनी स्तर पर वह अपने प्रभाव को बढ़ाने में लगा हुआ है।
तिब्बत में चीन का बड़ा सैन्य विस्तार
चीन ने तिब्बत में हाल ही में एक मानवरहित हवाई वाहन (UAV) परीक्षण केंद्र तैयार किया है। यह केंद्र 4300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और कठिन परिस्थितियों में सैन्य अभियानों को अंजाम देने में चीनी सेना की मदद करेगा। इसके अलावा तिब्बत में एक 720 मीटर लंबे रनवे वाला बड़ा सैन्य अड्डा बनाया गया है, जिसमें 4 एयरक्राफ्ट हैंगर, ईंधन भंडारण सुविधाएं और अन्य सैन्य ढांचे मौजूद हैं। यह अड्डा PLA के लिए एक अहम लॉजिस्टिक्स हब की तरह काम करेगा और भारत के लिए नई चिंता का कारण है।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि चीन ने अपनी 14वीं पंचवर्षीय योजना में तिब्बत के विकास के नाम पर 30 अरब अमेरिकी डॉलर आवंटित किए हैं। इस फंडिंग के जरिए तिब्बत में हाईवे नेटवर्क दोगुना किया गया, कई सरकारी प्रोजेक्ट शुरू हुए और रेल नेटवर्क भी तेजी से विस्तार किया जा रहा है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इन विकास परियोजनाओं के पीछे असली मकसद सैन्य प्रभुत्व मजबूत करना है।