प्रयागराज न्यूज डेस्क: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले में यह स्पष्ट किया कि बिना वकील की मदद के कोर्ट में मामले लड़ना मुश्किल और जोखिम भरा हो सकता है। याचिकाकर्ता दीपक चौरसिया ने अपनी संविदा नौकरी के विस्तार के आदेश को चुनौती देने के लिए खुद कोर्ट में बहस की कोशिश की, लेकिन अदालत ने पाया कि उनकी याचिका कई महत्वपूर्ण पक्षकारों को शामिल न करने और प्रक्रियागत त्रुटियों के कारण दोषपूर्ण थी।
कोर्ट ने याचिका की समीक्षा के बाद इसे खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता पर 5000 रुपये का जुर्माना भी लगाया। अदालत ने निर्देश दिया कि जुर्माने की राशि कानपुर नगर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा की जाए। न्यायालय ने यह भी देखा कि याचिकाकर्ता का स्वयं मुकदमा लड़ना उसके हित के खिलाफ भी था, क्योंकि वह आदेश रद्द करने का अनुरोध कर रहा था जो उसकी संविदा नौकरी के विस्तार को रोकता।
जस्टिस सौरभ श्याम शमेशरी की पीठ ने यह भी कहा कि स्वयं मुकदमा लड़ना पूरी तरह मना नहीं है और कुछ मामलों में याचिकाकर्ता अपने तर्क अच्छे तरीके से पेश कर सकता है। लेकिन जटिल मामलों में कानूनी प्रक्रिया और नियमों की पूरी समझ न होने के कारण बिना वकील के याचिका दायर करना अक्सर नुकसानदेह साबित होता है।
अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि पेशेवर वकील की मदद लेना अधिक सुरक्षित और प्रभावी होता है। यह केवल अदालत की प्रक्रिया की सुरक्षा के लिए ही नहीं, बल्कि याचिकाकर्ता के हित की रक्षा के लिए भी जरूरी है। कोर्ट ने यह संदेश स्पष्ट किया कि कानून की गहन समझ और उचित कानूनी रणनीति के बिना केस लड़ना जोखिम भरा हो सकता है।