भारतीय सेना का हर जवान देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने को सदैव तत्पर रहता है। ऐसे ही वीर सैनिकों में एक नाम और जुड़ गया है – लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी। उत्तर प्रदेश के अयोध्या जिले के मझवां गद्दोपुर गांव के इस 23 वर्षीय युवा अधिकारी ने सिक्किम में एक सैन्य अभियान के दौरान अपने एक साथी अग्निवीर को बचाने की कोशिश में जान की कुर्बानी दे दी। यह कहानी न केवल साहस और कर्तव्यनिष्ठा की गाथा है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है।
पिछले साल दिसंबर में सिक्किम स्काउट्स की एक टीम एक सामरिक संचालन बेस की ओर जा रही थी। लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी इस रूट ओपनिंग गश्ती दल का नेतृत्व कर रहे थे। इस दौरान, सुबह करीब 11 बजे, अग्निवीर स्टीफन सुब्बा लॉग ब्रिज पार करते समय फिसल कर एक पहाड़ी नदी में गिर पड़े और बहने लगे। बिना एक पल की देर किए लेफ्टिनेंट तिवारी ने मानवता, नेतृत्व और साहस का परिचय देते हुए जलधारा में छलांग लगा दी। उनके इस कदम ने साबित कर दिया कि एक सच्चा अधिकारी अपने सैनिकों के लिए न केवल नेतृत्व करता है, बल्कि आवश्यकता पड़ने पर उनकी जान बचाने के लिए अपनी जान भी दांव पर लगा सकता है।
एक अन्य जवान, नायक पुकार कटेल ने भी बहादुरी दिखाते हुए लेफ्टिनेंट तिवारी की सहायता की। दोनों की संयुक्त कोशिशों से अग्निवीर सुब्बा को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया, लेकिन इस वीर प्रयास में लेफ्टिनेंट तिवारी तेज बहाव में बह गए। करीब 30 मिनट की खोजबीन के बाद उनका शव घटनास्थल से लगभग 800 मीटर दूर मिला।
भारतीय सेना ने इस अप्रत्याशित और हृदयविदारक घटना पर गहरा दुख व्यक्त किया। त्रिशक्ति कोर के जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल जुबिन ए मिनवाला ने बेंगडुबी सैन्य स्टेशन पर लेफ्टिनेंट तिवारी को पूरे सैन्य सम्मान के साथ श्रद्धांजलि दी। भारतीय सेना ने कहा कि लेफ्टिनेंट तिवारी की बहादुरी और कर्तव्य के प्रति निष्ठा की विरासत आने वाले सभी सैनिकों को प्रेरित करती रहेगी।
लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी – एक स्वप्नद्रष्टा से योद्धा तक
शशांक तिवारी का बचपन से ही सपना था कि वह भारतीय सेना में शामिल होकर देश की सेवा करें। उन्होंने अयोध्या के केजिंगल बेल स्कूल से अपनी शिक्षा की शुरुआत की और बाद में जेबीए एकेडमी से इंटरमीडिएट पूरा किया। वर्ष 2019 में पहले ही प्रयास में उनका चयन प्रतिष्ठित नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) में हो गया। कठिन प्रशिक्षण और अथक परिश्रम के बाद उन्होंने 17 दिसंबर 2023 को पासिंग आउट परेड में लेफ्टिनेंट की रैंक के साथ भारतीय सेना में कदम रखा।
सेना में उनकी पहली पोस्टिंग सिक्किम में हुई थी – वह सीमावर्ती इलाके जहां चुनौती और खतरा हर कदम पर होता है। मात्र कुछ ही महीनों में उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि वे न केवल एक प्रशिक्षित अधिकारी हैं, बल्कि एक सच्चे नेता भी हैं – जो अपने जवानों के लिए जान देने से भी पीछे नहीं हटते।
राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई
शहीद लेफ्टिनेंट तिवारी का पार्थिव शरीर उनके पैतृक गांव अयोध्या लाया गया, जहां शनिवार को जमथरा घाट पर पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। शोक में डूबे परिवार, गांव और सेना के अधिकारी उनकी अंतिम यात्रा में उपस्थित थे। भारत मां ने एक और सपूत खो दिया, लेकिन वह हमेशा अमर रहेगा।
लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी का यह बलिदान हमें यह सिखाता है कि देश की सेवा का मार्ग सरल नहीं होता, लेकिन उसमें जो गौरव और सम्मान है, वह अमूल्य है। उनका जीवन और उनकी शहादत भारत के प्रत्येक नागरिक को यह याद दिलाती है कि वीरता का असली अर्थ क्या होता है।