मंगलवार को भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले एक बार फिर से ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच गया. रुपया पहली बार ₹91 के स्तर को पार कर गया, जिससे करेंसी मार्केट में तबाही जारी रही. चिंता की बात यह है कि डॉलर के मुकाबले रुपया सिर्फ 10 कारोबारी दिनों में ही ₹90 से ₹91 की ओर बढ़ गया. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, रुपया पहली बार 2 नवंबर को ₹90 के पार गया था, और अब यह गिरावट और भी तेज़ हो गई है.
जानकारों का मानना है कि विदेशी निवेशकों द्वारा मुनाफावसूली, भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते में देरी, और कई अन्य आंतरिक तथा बाहरी कारणों से रुपये में यह ऐतिहासिक गिरावट आई है.
करेंसी मार्केट में तबाही: 36 पैसे गिरकर ₹91.14 पर
मंगलवार को करेंसी मार्केट में भारतीय रुपये ने एक और बड़ा झटका झेला. कारोबारी सत्र के दौरान रुपया 36 पैसे गिरकर अमेरिकी डॉलर के मुकाबले पहली बार ₹91 के पार पहुंच गया.
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सुबह 11:45 बजे: रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले ₹91.14 पर कारोबार कर रहा था, जो पिछले बंद भाव से 36 पैसे कम था.
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शुरुआत: इंटर बैंक फॉरेन करेंसी एक्सचेंज मार्केट में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले ₹90.87 पर खुला.
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पिछला बंद भाव: सोमवार को रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले ₹90.78 के नए सर्वकालिक निचले स्तर पर बंद हुआ था.
विदेशी मुद्रा व्यापारियों के अनुसार, अगर यही ट्रेंड जारी रहा तो रुपया इसी महीने ₹92 प्रति डॉलर का आंकड़ा भी पार कर सकता है. पिछले 10 कारोबारी सत्रों में रुपया ₹90 से गिरकर ₹91 पर आ गया है, जबकि अकेले पिछले पांच सत्रों में ही स्थानीय मुद्रा अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 1 प्रतिशत टूट चुकी है.
रुपए में गिरावट के प्रमुख कारण
फिनरेक्स ट्रेजरी एडवाइजर्स एलएलपी के ट्रेजरी प्रमुख और कार्यकारी निदेशक अनिल कुमार भंसाली ने रुपये में आई इस गिरावट के लिए कई प्रमुख कारकों को जिम्मेदार ठहराया:
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अमेरिका-भारत व्यापार समझौता: भंसाली के अनुसार, व्यापार समझौते में जल्द प्रगति की संभावना कम है क्योंकि (तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति) डोनाल्ड ट्रम्प कृषि मुद्दों के बिना किसी समझौते के पक्ष में नहीं दिख रहे हैं, जिसका भारत विरोध कर रहा है.
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विदेशी निवेशकों की निकासी: एक्सचेंज के आंकड़ों के अनुसार, सोमवार को विदेशी निवेशकों (FIIs) ने ₹1,468.32 करोड़ के शेयर बेचे, जिससे डॉलर की मांग बढ़ी और रुपया कमजोर हुआ.
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बाजार के उतार-चढ़ाव: खरीद-बिक्री में उतार-चढ़ाव, कर निकासी के कारण रुपये की कमी, सट्टेबाजों द्वारा तेल की खरीद, निर्यातकों द्वारा डॉलर का भंडारण, और ऋण विक्रय जैसे कारक भी गिरावट के कारण हैं.
महंगाई के आंकड़े और व्यापार घाटा
रुपये में गिरावट ऐसे समय में आई है जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट देखने को मिल रही है, जिससे आमतौर पर रुपये को समर्थन मिलता है.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, नवंबर में थोक मूल्य महंगाई लगातार दूसरे महीने नेगेटिव (-0.32%) पर बनी रही, हालांकि दालों और सब्जियों जैसे खाद्य पदार्थों की कीमतों में महीने-दर-महीने वृद्धि हुई थी. भंसाली ने यह भी बताया कि सोमवार को व्यापार घाटे में कमी आने के बावजूद भी स्थानीय मुद्रा में कोई सुधार नहीं हुआ.