वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में एक अहम सुनवाई होनी है। इस कानून को संविधान विरोधी बताते हुए कई याचिकाकर्ताओं ने इसे चुनौती दी है। याचिकाओं में तर्क दिया गया है कि नया वक्फ कानून धार्मिक स्वतंत्रता, संपत्ति के अधिकार और समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की दो सदस्यीय बेंच कर रही है।
क्या है मामला?
वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को लेकर विभिन्न धार्मिक संगठनों और नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की हैं। उनका कहना है कि यह कानून न केवल मुस्लिम समुदाय के अधिकारों का हनन करता है, बल्कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (धार्मिक भेदभाव का निषेध), अनुच्छेद 25-26 (धार्मिक स्वतंत्रता), और अनुच्छेद 300A (संपत्ति का अधिकार) का भी उल्लंघन करता है।
कौन कर रहे हैं पक्षों का प्रतिनिधित्व?
मामले में केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता अदालत में पक्ष रख रहे हैं, जबकि याचिकाकर्ताओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल पक्ष रखेंगे। इससे पहले इस मामले की सुनवाई जस्टिस संजीव खन्ना, पीवी संजय कुमार और केवी विश्वनाथन की बेंच कर रही थी, लेकिन अब यह सुनवाई दो जजों की नई पीठ द्वारा की जा रही है।
अब तक क्या हुआ है?
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8 अगस्त 2024 को लोकसभा में संसदीय कार्य और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री किरण रिजिजू द्वारा वक्फ संशोधन बिल पेश किया गया था। विपक्ष ने इसे अल्पसंख्यकों के खिलाफ बताते हुए भारी विरोध किया था।
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9 अगस्त 2024 को बिल की समीक्षा के लिए 31 सदस्यीय जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (JPC) का गठन किया गया। इस कमेटी ने छह महीनों में कुल 34 बैठकें कीं और 30 जनवरी 2025 को 500 पृष्ठों की रिपोर्ट लोकसभा अध्यक्ष को सौंपी।
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कमेटी ने सरकार के 14 सुझावों को स्वीकार किया, लेकिन विपक्ष के 44 संशोधन प्रस्तावों को खारिज कर दिया गया।
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2 अप्रैल 2025 को लोकसभा में यह बिल बहुमत से पास हुआ और अगले दिन 3 अप्रैल को राज्यसभा से भी पारित हो गया।
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5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इसे अपनी मंजूरी दी और 8 अप्रैल को गृह मंत्रालय (MHA) ने इस कानून को औपचारिक रूप से लागू करने का नोटिफिकेशन जारी कर दिया।
याचिकाकर्ताओं की आपत्तियाँ क्या हैं?
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याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि वक्फ बोर्ड की संरचना में गैर-मुस्लिमों को सदस्य न बनाने की सिफारिश सांप्रदायिक भावना को बढ़ावा देती है और इससे प्रशासन में पक्षपात बढ़ेगा।
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वक्फ संपत्ति पर डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर को अधिकार देने का विरोध किया गया है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इससे वक्फ संपत्तियों पर सरकारी हस्तक्षेप बढ़ेगा और धार्मिक स्वतंत्रता खतरे में पड़ेगी।
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याचिकाओं में यह भी कहा गया है कि अन्य धर्मों के ट्रस्टों जैसे हिंदू ट्रस्ट या चर्चों पर ऐसे प्रतिबंध नहीं लगाए गए हैं, जैसा कि वक्फ बोर्ड पर लगाया गया है, जिससे यह कानून मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभावपूर्ण बन जाता है।
संवैधानिक सवाल और संभावित असर
यह मामला केवल एक धर्म विशेष से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह भारतीय संविधान में प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता और संपत्ति अधिकार जैसे मूलभूत अधिकारों की व्याख्या को भी चुनौती देता है। यदि सुप्रीम कोर्ट इस कानून को असंवैधानिक मानता है, तो इसका असर देश भर के धार्मिक ट्रस्टों और संस्थाओं की संरचना पर पड़ सकता है।
क्या होगा आज?
15 मई को हुई पिछली सुनवाई में अदालत ने केंद्र और याचिकाकर्ताओं को 19 मई तक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था। हालांकि खबर लिखे जाने तक कोई औपचारिक जानकारी नहीं आई है कि हलफनामे दाखिल हुए हैं या नहीं। आज की सुनवाई में अदालत सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोई अंतरिम आदेश जारी कर सकती है या फिर अगली सुनवाई की तारीख तय की जा सकती है।
निष्कर्ष
वक्फ संशोधन एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट की आज की सुनवाई कानून, धर्म और संविधान के टकराव को दर्शाती है। जहां सरकार इसे प्रशासनिक सुधार का कदम मान रही है, वहीं याचिकाकर्ता इसे मौलिक अधिकारों पर हमला बता रहे हैं। अब देखना यह है कि देश की सर्वोच्च अदालत इस संवेदनशील और विवादित कानून पर क्या रुख अपनाती है।